लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ |log kahate hai mai sharaabii huu | Sharaabi Movie | Amitabh Bachchan

लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ तुमने भी शायद यही सोच लिया हां … लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ | किसी पे हुस्न का गुरूर जवानी का नशा किसी के दिल पे मोहब्बत की रवानी का नशा किसी को देखे साँसों से उभरता है नशा बिना पिये भी कहीं हद से गुज़रता है नशा… Continue reading लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ |log kahate hai mai sharaabii huu | Sharaabi Movie | Amitabh Bachchan

इस से पहले कि बेवफा हो जाएँ / अहमद फ़राज़

इस से पहले कि बेवफा हो जाएँ क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ तू भी हीरे से बन गया पत्थर हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ हम भी मजबूरियों का उज़्र करें फिर कहीं और मुब्तिला हो जाएँ अब के गर तू मिले तो हम तुझसे ऐसे लिपटें तेरी क़बा… Continue reading इस से पहले कि बेवफा हो जाएँ / अहमद फ़राज़

खुदा / रात पश्मीने की / गुलज़ार

बुरा लगा तो होगा ऐ खुदा तुझे, दुआ में जब, जम्हाई ले रहा था मैं– दुआ के इस अमल से थक गया हूँ मैं ! मैं जब से देख सुन रहा हूँ, तब से याद है मुझे, खुदा जला बुझा रहा है रात दिन, खुदा के हाथ में है सब बुरा भला– दुआ करो ! अजीब सा… Continue reading खुदा / रात पश्मीने की / गुलज़ार

वो मुक़द्दर का सिकंदर जानेमन कहलाएगा

रोते हुए आते है न सब हंसता हुआ जो जाएगा वो मुक़द्दर का सिकंदर जानेमन कहलाएगा वो सिकंदर क्या था ज़िसने ज़ुल्म से जीता ज़हां प्यार से जीते दिलो को वो झुका दे आसमा जो सितारो पर कहानी प्यार की लिख जाएगा वो मुक़द्दर का सिकंदर जानेमन कहलाएगा ज़िंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी… Continue reading वो मुक़द्दर का सिकंदर जानेमन कहलाएगा

फ़सादात /रात पश्मीने की / गुलज़ार

उफुक फलांग के उमरा हुजूम लोगों का कोई मीनारे से उतरा, कोई मुंडेरों से किसी ने सीढियां लपकीं, हटाई दीवारें– कोई अजाँ से उठा है, कोई जरस सुन कर! गुस्सीली आँखों में फुंकारते हवाले लिये, गली के मोड़ पे आकर हुए हैं जमा सभी! हर इक के हाथ में पत्थर हैं कुछ अकीदों के खुदा… Continue reading फ़सादात /रात पश्मीने की / गुलज़ार

कायनात / रात पश्मीने की / गुलज़ार

बस चन्द करोड़ों सालों में सूरज की आग बुझेगी जब और राख उड़ेगी सूरज से जब कोई चाँद न डूबेगा और कोई जमीं न उभरेगी तब ठंढा बुझा इक कोयला सा टुकड़ा ये जमीं का घूमेगा भटका भटका मद्धम खकिसत्री रोशनी में ! मैं सोचता हूँ उस वक्त अगर कागज़ पे लिखी इक नज़्म कहीं उड़ते… Continue reading कायनात / रात पश्मीने की / गुलज़ार

अपाहिज व्यथा

अपाहिज व्यथा को सहन कर रहा हूँ, तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ । ये दरवाज़ा खोलो तो खुलता नहीं है, इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ । अँधेरे में कुछ ज़िंदगी होम कर दी, उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ । वे संबंध अब तक बहस में टँगे हैं, जिन्हें… Continue reading अपाहिज व्यथा

आज मानव का सुनहला प्रात है

आज मानव का सुनहला प्रात है, आज विस्मृत का मृदुल आघात है; आज अलसित और मादकता-भरे, सुखद सपनों से शिथिल यह गात है; मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो, आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो । आज सौरभ में भरा उच्छ्‌वास है, आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है; आज शतदल पर मुदित सा झूलता, कर… Continue reading आज मानव का सुनहला प्रात है