gulzar poetry kitaben
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खुदा / रात पश्मीने की / गुलज़ार
बुरा लगा तो होगा ऐ खुदा तुझे, दुआ में जब, जम्हाई ले रहा था मैं– दुआ के इस अमल से…
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फ़सादात /रात पश्मीने की / गुलज़ार
उफुक फलांग के उमरा हुजूम लोगों का कोई मीनारे से उतरा, कोई मुंडेरों से किसी ने सीढियां लपकीं, हटाई दीवारें–…
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कायनात / रात पश्मीने की / गुलज़ार
बस चन्द करोड़ों सालों में सूरज की आग बुझेगी जब और राख उड़ेगी सूरज से जब कोई चाँद न डूबेगा…
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वक्त / रात पश्मीने की / गुलज़ार
मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ कुचलता हुआ घास की कलगियाँ गिराता हुआ गर्दनें इन दरख्तों की,छुपता हुआ जिनके…
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