होली के रंगों में एक रंग और : गुलज़ार साब की एक त्रिवेणी ज़रा पैलेट सम्भालो रंगोबू का मैं कैनवास आसमां का खोलता हूं बनाओ फिर से सूरत आदमी की! साथ में एक और रंग बोनस में.. ईद के चाँद पर होली का रंग! जहां नुमा एक होटल है नां… जहां नुमा के पीछे एक… Continue reading होली के रंगों में एक रंग और : गुलज़ार
Category: Gulzar
लकीरे है तो रहने दो / Gulzar
लकीरे है तो रहने दो किसी ने रूठ कर गुस्से में शायद खीच दी थी, इन्ही को अब बनायो पाला और आयो कबड़ी खेलते है, Lakeerein hain to rehne do, Kisi ne rooth kar gusse mein shayad kheech di thi. Unhi ko ab banao paala aur aao kabaddi khelte hain. English Translation: These lines that… Continue reading लकीरे है तो रहने दो / Gulzar
मौत तू एक कविता है / Gulzar / Amitabh Bachchan / Anand Movie
A poetic excerpt from the movie Anand written by Gulzar sahab and enunciated by Amitabh Bachchan sir मौत तू एक कविता है, मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे दिन अभी पानी में हो, रात किनारे… Continue reading मौत तू एक कविता है / Gulzar / Amitabh Bachchan / Anand Movie
Zindagi Kya Hai Janane Ke Liye / Gulzar
ज़िंदगी क्या है जानने के लिये ज़िंदा रहना बहुत जरुरी है आज तक कोई भी रहा तो नही सारी वादी उदास बैठी है मौसमे गुल ने खुदकशी कर ली किसने बरुद बोया बागो मे आओ हम सब पहन ले आइने सारे देखेंगे अपना ही चेहरा सारे हसीन लगेंगे यहाँ है नही जो दिखाई देता है… Continue reading Zindagi Kya Hai Janane Ke Liye / Gulzar
Gulzar – Ek Laash – Narreted By Yashpal Sharma Lyrics Gulzar
The video was created for Independence Day special on CNN IBN in 2008. This is one of the poems from Gulzars many masterpieces. It is written by Gulzar and narrated by Yashpal Sharma.
फ़सादात /रात पश्मीने की / गुलज़ार
उफुक फलांग के उमरा हुजूम लोगों का कोई मीनारे से उतरा, कोई मुंडेरों से किसी ने सीढियां लपकीं, हटाई दीवारें– कोई अजाँ से उठा है, कोई जरस सुन कर! गुस्सीली आँखों में फुंकारते हवाले लिये, गली के मोड़ पे आकर हुए हैं जमा सभी! हर इक के हाथ में पत्थर हैं कुछ अकीदों के खुदा… Continue reading फ़सादात /रात पश्मीने की / गुलज़ार
कायनात / रात पश्मीने की / गुलज़ार
बस चन्द करोड़ों सालों में सूरज की आग बुझेगी जब और राख उड़ेगी सूरज से जब कोई चाँद न डूबेगा और कोई जमीं न उभरेगी तब ठंढा बुझा इक कोयला सा टुकड़ा ये जमीं का घूमेगा भटका भटका मद्धम खकिसत्री रोशनी में ! मैं सोचता हूँ उस वक्त अगर कागज़ पे लिखी इक नज़्म कहीं उड़ते… Continue reading कायनात / रात पश्मीने की / गुलज़ार
वक्त / रात पश्मीने की / गुलज़ार
मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ कुचलता हुआ घास की कलगियाँ गिराता हुआ गर्दनें इन दरख्तों की,छुपता हुआ जिनके पीछे से निकला चला जा रहा था वह सूरज तआकुब में था उसके मैं गिरफ्तार करने गया था उसे जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था वक्त की आँख… Continue reading वक्त / रात पश्मीने की / गुलज़ार
गुलज़ार की बोस्की /Gulzar Ki Boski
बोस्की ब्याहने का समय अब करीब आने लगा है जिस्म से छूट रहा है कुछ कुछ रूह में डूब रहा है कुछ कुछ कुछ उदासी है,सुकूं भी सुबह का वक्त है पौ फटने का, या झुटपुटा शाम का है मालूम नहीं यूँ भी लगता है कि जो मोड़ भी अब आएगा वो किसी और… Continue reading गुलज़ार की बोस्की /Gulzar Ki Boski
नज़म उलझी हुई है सीने में
नज़म उलझी हुई है सीने में मिस्रें अटके हुए हैं होंठों पर उड़ाते फिरते हैं तितलियों की तरह लफ्ज़ कागज़ पे बैठे ही नहीं nazm ulajhii huii hai siine me.n misre aTake hue hai.n hoTho.n par u.Date-phirate hai.n titliyo.n kii tarah lafz kaaGaz pe baiThate hii nahii.n नज़म, Nazm: Arrangement, Ordain, Order, Poetry, Verse उलझना,… Continue reading नज़म उलझी हुई है सीने में