Written by 18th century poet Baba Bulle Shah, this ghazal spells the magic of sufism and madness of love. Tere Ishq nachaiyaan kar key thaiyaa thaiyaa Your love… Continue reading Tere Ishq nachaiyaan kar key thaiyaa thaiyaa / Bulle Shah
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बोतल छुपा दो कफ़न में मेरे
बोतल छुपा दो कफ़न में मेरे शमशान में पिया करूंगा, जब खुदा मांगेगा हिसाब तो पैग बना के दिया करूंगा पी के रात को हम उनको भुलाने लगे शराब मे ग़म को मिलाने लगे ये शराब भी बेवफा निकली यारो नशे मे तो वो और भी याद आने लगे ! बैठे हैं दिल में ये… Continue reading बोतल छुपा दो कफ़न में मेरे
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है; मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी। जिगर की आग बुझे जिससे जल्द वो शय ला, लगा के बर्फ़ में साक़ी, सुराही-ए-मय ला। पीने से कर चुका था मैं तौबा मगर ‘जलील’; बादल का रंग देख के नीयत बदल गई। ऐ ज़ौक़ देख… Continue reading नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मधुशाला – हरिवंशराय बच्चन
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१। प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे… Continue reading मधुशाला – हरिवंशराय बच्चन
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है; अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है। ~ Faiz Ahmad Faiz मैं थोड़ी देर तक बैठा रहा उसकी आँखों के मैखाने में; दुनिया मुझे आज तक नशे का आदि समझती है। आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़’; जब पी चुके शराब… Continue reading बोतलें खोल कर तो पी बरसों
ना पीने का शौक था, ना पिलाने का शौक था
ग़म इस कदर मिला कि घबरा के पी गए; ख़ुशी थोड़ी सी मिली तो मिला के पी गए; यूँ तो ना थे जन्म से पीने की आदत; शराब को तनहा देखा तो तरस खा के पी गए। ना पीने का शौक था, ना पिलाने का शौक था; हमे तो सिर्फ नज़र मिलाने का शौक था;… Continue reading ना पीने का शौक था, ना पिलाने का शौक था
नशा हम किया करते है, इलज़ाम शराब को दिया करते हैं
नशा हम किया करते है, इलज़ाम शराब को दिया करते हैं; कसूर शराब का नहीं उनका है जिनका चेहरा हम जाम में तलाश किया करते हैं। तनहइयो के आलम की ना बात करो जनाब; नहीं तो फिर बन उठेगा जाम और बदनाम होगी शराब। मैखाने मे आऊंगा मगर पिऊंगा नही साकी; ये शराब मेरा गम… Continue reading नशा हम किया करते है, इलज़ाम शराब को दिया करते हैं
मौसम भी है, उम्र भी, शराब भी है
बड़ी भूल हुई अनजाने में, ग़म छोड़ आये महखाने में; फिर खा कर ठोकर ज़माने की, फिर लौट आये मयखाने में; मुझे देख कर मेरे ग़म बोले, बड़ी देर लगा दी आने में। मौसम भी है, उम्र भी, शराब भी है; पहलू में वो रश्के-माहताब भी है; दुनिया में अब और चाहिए क्या मुझको; साक़ी… Continue reading मौसम भी है, उम्र भी, शराब भी है
यूँ तो ऐसा कोई ख़ास याराना नहीं है मेरा
यूँ तो ऐसा कोई ख़ास याराना नहीं है मेरा; शराब से… इश्क की राहों में तन्हा मिली तो; हमसफ़र बन गई……. उम्र भर भी अगर सदाएं दें; बीत कर वक़्त फिर नहीं मरते; सोच कर तोड़ना इन्हें साक़ी; टूट कर जाम फिर नहीं जुड़ते। ~ Syed Abdul Hameed Adam यह शायरी लिखना उनका काम… Continue reading यूँ तो ऐसा कोई ख़ास याराना नहीं है मेरा
नफरतों का असर देखो जानवरों का बटंवारा हो गया
पी के रात को हम उनको भुलाने लगे; शराब मे ग़म को मिलाने लगे; ये शराब भी बेवफा निकली यारो; नशे मे तो वो और भी याद आने लगे। मैं तोड़ लेता अगर तू गुलाब होती; मैं जवाब बनता अगर तू सवाल होती; सब जानते हैं मैं नशा नही करता; मगर मैं भी पी लेता… Continue reading नफरतों का असर देखो जानवरों का बटंवारा हो गया