ज़ाकिर भी लिखूं तो जिक़्र उन्ही का आता है

ज़ाकिर1 भी लिखूं तो जिक़्र उन्ही का आता है खुदा में भी हमें बस नजर वो आता है अब इबादत भी उनको याद करने से होती है उनकी गली से गुजरना ज़ियारत2 हो जाता है मायने: ज़ाकिर: भगवान् की प्रशंसा की कविता ज़ियारत: तीर्थयात्रा   एक अरसे से उनसे नजर नहीं मिली जमाना गुजर गया… Continue reading ज़ाकिर भी लिखूं तो जिक़्र उन्ही का आता है

वो भी शायद रो पडे वीरान काग़ज़ देख कर….

वो भी शायद रो पडे वीरान काग़ज़ देख कर मैंने उस को आखिरी खत में लिख़ा कुछ भी नहीं मजंमून सूझते हैं हज़ारों नए नए क़ासिद ये ख़त नहीं मिरे ग़म की किताब है पहली बार वो ख़त लिक्ख़ा था जिस का जवाब भी आ सकता था तिरा ख़त आने से दिल को मेरे आराम… Continue reading वो भी शायद रो पडे वीरान काग़ज़ देख कर….

Khat Shayari: अंधेरा है कैसे तिरा खत पढ़ूं, लिफ़ाफ़े में जरा रोशनी भेज दे

कासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूं मैं जानता हूं जो वो लिखेंगे जावाब में कैसे मानें कि उन्हे भूल गया तू ऐ ‘कैफ़’ उअन के ख़त आज हमें तेरे सिरहाने से मिले क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज्तिराब में उन की तरफ़ से आप लिखे ख़त जवाब में अपना खत आप… Continue reading Khat Shayari: अंधेरा है कैसे तिरा खत पढ़ूं, लिफ़ाफ़े में जरा रोशनी भेज दे

समय रहते / रामभरत पासी

समय रहते दबा दो मिट्टी में गहरे उन सड़ी-गली परम्पराओं को बदबू फैलाने से पहले किसी लाश की तरह क्योंकि फिर नहीं झुठला पाओगे तुम पानी और रेत से भरी बाल्टी पर लिखे ‘आग’ जैसे अपने दामन पर लगे बदनुमां धब्बे को।

रावण

“सीते, राघव की परिणीता हो लेकिन, जो सच है उसको तो कानों से सुन लो, जो अनुचित लगे निकालो अपने मन से, पर कुछ भी तथ्य लगे तो उसको गुन लो! स्वीकार किया यदि होता चंद्रनखा को तो एक नया संबंध परस्पर जुडता, दो संस्कृतियाँ मिलतीं दोनो कुछ पातीं औ लीक छोड कर एक नया… Continue reading रावण

वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा

उस के दुश्मन हैं बहुत, आदमी अच्छा होगा, वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा. - बशीर बद्र

  उस के दुश्मन हैं बहुत, आदमी अच्छा होगा, वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा. – बशीर बद्र us ke dushman hai.n bahut, aadamii achchhaa hogaa vo bhii merii hii tarah shahar me.n tanhaa hogaa – Bashir Badr   कोई अफ़साना छेड़ तन्हाई, रात कटती नहीं जुदाई की. – फिराक गोरखपुरी ko_ii… Continue reading वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा

Munawwar Rana Shayari on ‘Maa’ | ‘माँ’ पर शायरी

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना Maine rote hue ponchhe the kisi din aansoo Muddaton Maa ne nahi dhoya dupatta apna ***** लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती Labon pe uske kabhi baddua nahi hoti Bas… Continue reading Munawwar Rana Shayari on ‘Maa’ | ‘माँ’ पर शायरी

Collection of Munawwar Rana Shayari and Ghazals | मुनव्वर राना

  बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है ***** ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता, मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है *****… Continue reading Collection of Munawwar Rana Shayari and Ghazals | मुनव्वर राना

आदमी बुलबुला है पानी का …

आदमी बुलबुला है पानी का और पानी की बहती सतह पर टूटता है डूबता भी है फिर उभरता है फिर से बहता है ना समंदर निगल सका है इसको न तवारीख तोड़ पायी है वक़्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का ज़िन्दगी क्या है जानने के लिए ज़िंदा रहना बहुत जरुरी है आज तक… Continue reading आदमी बुलबुला है पानी का …