आदमी बुलबुला है पानी का …

आदमी बुलबुला है पानी का और पानी की बहती सतह पर टूटता है डूबता भी है फिर उभरता है फिर से बहता है ना समंदर निगल सका है इसको न तवारीख तोड़ पायी है वक़्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का ज़िन्दगी क्या है जानने के लिए ज़िंदा रहना बहुत जरुरी है आज तक… Continue reading आदमी बुलबुला है पानी का …

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

मैं भूल जाऊं तुम्हें अब यही मुनासिब है

दूर जाने की कोशिशों में हैं

इसी सबब से हैं शायद, अज़ाब जितने हैं

जब तेरा दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा

रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह

अभी इस तरफ़ न निगाह कर, मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ मेरा लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ abhii is taraf n nigaah kar main gjl kii palaken sanvaar loon meraa lafj-lafj ho aaiinaa tujhe aaiine men utaar loon मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब का जगा हुआ ज़रा… Continue reading अभी इस तरफ़ न निगाह कर, मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ