urdu poetry ahmed faraz
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हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले डरे क्यों…
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Best of Gulzar
जहां तेरे पैरों के कँवल गिरा करते थे हँसे तो दो गालों में भँवर पड़ा करते थे तेरी कमर के…
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