बच्चे काम पर जा रहे हैं

पढ़िए, राजेश जोशी की यह कविता. किसी छोटू से चाय-पानी-सुट्टा मांगते हुए याद कीजिएगा| बच्चे काम पर जा रहे हैं हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना चाहिए लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे? क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी… Continue reading बच्चे काम पर जा रहे हैं

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले भ्रम… Continue reading हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

Best of Gulzar

जहां तेरे पैरों के कँवल गिरा करते थे हँसे तो दो गालों में भँवर पड़ा करते थे तेरी कमर के बल पे नदी मुड़ा करती थी हंसी को सुनके तेरी फ़सल पका करती थी छोड़ आए हम वो गलियां Where your lotus-like feet used to tread And your dimples would resembles storms when you smiled… Continue reading Best of Gulzar

इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है

वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

मैं भूल जाऊं तुम्हें अब यही मुनासिब है

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है

हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे