हमनी के राति दिन दुखवा भोगत बानी हमनी के साहेब से मिनती सुनाइबि। हमनी के दुख भगवानओं न देखता ते, हमनी के कबले कलेसवा उठाइबि। पदरी सहेब के कचहरी में जाइबिजां, बेधरम होके रंगरेज बानि जाइबिजां, हाय राम! धसरम न छोड़त बनत बा जे, बे-धरम होके कैसे मुंहवा दिखइबि॥१॥ खंभवा के फारी पहलाद के बंचवले।… Continue reading अछूत की शिकायत / हीरा डोम
Author: Saavan
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मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको
आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी चल रही है छंद के आयाम… Continue reading मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको
रावण
“सीते, राघव की परिणीता हो लेकिन, जो सच है उसको तो कानों से सुन लो, जो अनुचित लगे निकालो अपने मन से, पर कुछ भी तथ्य लगे तो उसको गुन लो! स्वीकार किया यदि होता चंद्रनखा को तो एक नया संबंध परस्पर जुडता, दो संस्कृतियाँ मिलतीं दोनो कुछ पातीं औ लीक छोड कर एक नया… Continue reading रावण
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
उस के दुश्मन हैं बहुत, आदमी अच्छा होगा, वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा. – बशीर बद्र us ke dushman hai.n bahut, aadamii achchhaa hogaa vo bhii merii hii tarah shahar me.n tanhaa hogaa – Bashir Badr कोई अफ़साना छेड़ तन्हाई, रात कटती नहीं जुदाई की. – फिराक गोरखपुरी ko_ii… Continue reading वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
Munawwar Rana Shayari on ‘Maa’ | ‘माँ’ पर शायरी
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना Maine rote hue ponchhe the kisi din aansoo Muddaton Maa ne nahi dhoya dupatta apna ***** लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती Labon pe uske kabhi baddua nahi hoti Bas… Continue reading Munawwar Rana Shayari on ‘Maa’ | ‘माँ’ पर शायरी
Collection of Munawwar Rana Shayari and Ghazals | मुनव्वर राना
बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है ***** ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता, मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है *****… Continue reading Collection of Munawwar Rana Shayari and Ghazals | मुनव्वर राना
आदमी बुलबुला है पानी का …
आदमी बुलबुला है पानी का और पानी की बहती सतह पर टूटता है डूबता भी है फिर उभरता है फिर से बहता है ना समंदर निगल सका है इसको न तवारीख तोड़ पायी है वक़्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का ज़िन्दगी क्या है जानने के लिए ज़िंदा रहना बहुत जरुरी है आज तक… Continue reading आदमी बुलबुला है पानी का …
मधुशाला – हरिवंशराय बच्चन
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१। प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे… Continue reading मधुशाला – हरिवंशराय बच्चन
रूह देखी है ,कभी रूह को महसूस किया है ?
गुलजार का लेखन क्यूँ इतना दिल के करीब लगता है ..क्यूंकि वह आम भाषा में लिखा होता है ..रूह से लिखा हुआ ..उनकी लिखी एक नज्म कितना कुछ कह जाती हैं … रूह देखी है कभी रूह को महसूस किया है ? जागते जीते हुए दुधिया कोहरे से लिपट कर साँस लेते हुए इस कोहरे… Continue reading रूह देखी है ,कभी रूह को महसूस किया है ?
गुलज़ार की बेहतरीन नज़्में | Gulzar Poetry
नज़्म उलझी हुई है सीने में मिसरे अटके हुए हैं होठों पर उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा बस तेरा नाम ही मुकम्मल है इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी बारिश आती है तो पानी को… Continue reading गुलज़ार की बेहतरीन नज़्में | Gulzar Poetry