Best of Gulzar

जहां तेरे पैरों के कँवल गिरा करते थे हँसे तो दो गालों में भँवर पड़ा करते थे तेरी कमर के बल पे नदी मुड़ा करती थी हंसी को सुनके तेरी फ़सल पका करती थी छोड़ आए हम वो गलियां Where your lotus-like feet used to tread And your dimples would resembles storms when you smiled… Continue reading Best of Gulzar

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

मैं भूल जाऊं तुम्हें अब यही मुनासिब है

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है

हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे

दूर जाने की कोशिशों में हैं

इसी सबब से हैं शायद, अज़ाब जितने हैं

जब तेरा दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा

रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह