अख्तर इमाम रिज़वी

अश्क जब दीदए-तर से निकला एक काँटा सा जिगर से निकला फिर न मैं रात गए तक लौटा डूबती शाम जो घर से निकला एक मैयत की तरह लागता था चाँद जब क़ैदे-सहर से निकला मुझको मंजिल भी न पहचान सकी मैं की जब गुर्दे-सफर से निकला हाय दुनिया ने उसे अश्क कहा खून जो… Continue reading अख्तर इमाम रिज़वी

अख़्तर-उल-ईमान

जन्म: 12 नवंबर 1915,निधन: 1996,कुछ प्रमुख कृतियाँ-तारीक सय्यारा (1943), गर्दयाब (1946), आबजू (1959), यादें (1961), बिंत-ए-लम्हात (1969), नया आहंग (1977), सार-ओ-सामान 1. आती नहीं कहीं से दिल-ए-ज़िन्दा की सदा सूने पड़े हैं कूचा-ओ-बाज़ार इश्क़ के [1] है शम-ए-अंजुमन का नया हुस्न-ए-जाँ गुदाज़[2] शायद नहीं रहे वो पतंगों के वलवले[3]  ताज़ा न रख सकेगी रिवायात-ए-दश्त-ओ-दर वो… Continue reading अख़्तर-उल-ईमान

अख़्तर नाज़्मी

1. कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके वो ख़त भी मगर मैंने जला कर नहीं फेंके ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके इक तंज़ है कलियों का तबस्सुम भी मगर क्यों मैंने तो कभी फूल मसल कर नहीं फेंके वैसे तो इरादा… Continue reading अख़्तर नाज़्मी

अख़्तर अज़ीज़ के सौ शेर

127,  दोंदीपुर, इलाहाबाद – 211003 1. हर क़दम इक नई सी आहट है। कुछ नहीं, सिर्फ़ बौखलाहट है। 2. दिल में चिनगारियां चटकती हैं, मन की भट्टी में ताव कितना है। 3. सिफ़ खुशियां बटोरने वालो, दुःख भी रक्खा करो दुलार के साथ। 4. जब तेरे दिल को जीत लिया, तब सात समुन्दर पार हुए।… Continue reading अख़्तर अज़ीज़ के सौ शेर

अख़्तर अंसारी

 (जन्म : ०१ अक्टूबर १९०९ ,बदायूँ ,पाकिस्तान) 1. इत्तफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे मैं देखता था उसे और वो देखता था मुझे अगरचे उसकी नज़र में थी न आशनाई मैं जानता हूँ कि बरसों से जानता था मुझे तलाश कर न सका फिर मुझे वहाँ जाकर ग़लत समझ के जहाँ उसने खो… Continue reading अख़्तर अंसारी

अकबर इलाहाबादी

1. दिल मेरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला बुत के बन्दे तो मिले अल्लाह का बन्दा न मिला बज़्म-ए-याराँ से फिरी बाद-ए-बहारी मायूस एक सर भी उसे आमादा-ए-सौदा न मिला गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आये बहुत इत्रफ़रोश तालिब-ए-ज़मज़म-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला वाह क्या राह दिखाई हमें मुर्शद ने कर दिया काबे को गुम… Continue reading अकबर इलाहाबादी

अंबर बहराइची

1. सात रंगों की धनक यों भी सजा कर देखना मेरी परछाई ख़यालों में बसा कर देखना आसमानों में ज़मीं के चाँद तारे फेंक कर मौसमों को अपनी मुट्ठी में छिपा कर देखना फ़ासलों की कैद से धुंधला इशारा ही सही बादलों की ओट से आँसू गिरा कर देखना लौट कर वहशी जज़ीरों से मैं… Continue reading अंबर बहराइची

अंजुम सलीमी

1. दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया दिल बुझने लगा था सो नज़ारे से उठाया बे-जान पड़ा देखता रहता था मैं उस को इक रोज़ मुझे उस ने इशारे से उठाया इक लहर मुझे खींच के ले आई भँवर में वो लहर जिसे मैं ने किनारे से उठाया घर में कहीं गुंजाइश-ए-दर ही नहीं… Continue reading अंजुम सलीमी

‘असअद’ भोपाली

1. कुछ भी हो वो अब दिल से जुदा हो नहीं सकते हम मुजरिम-ए-तौहीन-ए-वफ़ा हो नहीं सकते ऐ मौज-ए-हवादिस तुझे मालूम नहीं क्या हम अहल-ए-मोहब्बत हैं फ़ना हो नहीं सकते इतना तो बता जाओ ख़फ़ा होने से पहले वो क्या करें जो तुम से ख़फ़ा हो नहीं सकते इक आप का दर है मेरी दुनिया-ए-अक़ीदत… Continue reading ‘असअद’ भोपाली

‘अनवर’ साबरी

1. रहते हुए क़रीब जुदा हो गए हो तुम बंदा-नवाज़ जैसे ख़ुदा हो गए हो तुम मजबूरियों को देख के अहल-ए-नियाज़ की शायान-ए-ऐतबार-ए-जफ़ा हो गए हो तुम होता नहीं है कोई किसी का जहाँ रफ़ीक़ उन मंज़िलों में राह-नुमा हो गए हो तुम तन्हा तुम्हीं हो जिन की मोहब्बत का आसरा उन बे-कसों के दिल… Continue reading ‘अनवर’ साबरी