अज्मल अज्मली

क़्ते-सफ़र क़रीब है बिस्तर समेट लूँ बिखरा हुआ हयात का दफ्तर समेट लूँ फिर जाने हम मिलें न मिलें इक ज़रा रुको मैं दिल के आईने में ये मंज़र समेट लूँ गैरों ने जों सुलूक किए उनका क्या गिला फेंके हैं दोस्तों ने जों पत्थर समेट लूँ कल जाने कैसे होंगे कहाँ होंगे घर के… Continue reading अज्मल अज्मली