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मौसम भी है, उम्र भी, शराब भी है

बड़ी भूल हुई अनजाने में, ग़म छोड़ आये महखाने में;
फिर खा कर ठोकर ज़माने की, फिर लौट आये मयखाने में;
मुझे देख कर मेरे ग़म बोले, बड़ी देर लगा दी आने में।

मौसम भी है, उम्र भी, शराब भी है;
पहलू में वो रश्के-माहताब भी है;
दुनिया में अब और चाहिए क्या मुझको;
साक़ी भी है, साज़ भी है, शराब भी है।
~ Akhtar Sheerani

कुछ सही तो कुछ खराब कहते हैं;
लोग हमें बिगड़ा हुआ नवाब कहते हैं;
हम तो बदनाम हुए कुछ इस कदर;
कि पानी भी पियें तो लोग शराब कहते हैं।

मैखाने मे आऊंगा मगर पिऊंगा नहीं, ऐ साकी;
ये शराब मेरा गम मिटाने की औकात नही रखती!

बैठे हैं दिल में ये अरमां जगाये;
कि वो आज नजरों से अपनी पिलायें;
मजा तो तब है पीने का यारो;
इधर हम पियें और नशा उनको आये।