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अबू आरिफ

1.
अज़्म मोहकम करके दिल में ये ही एक सहारा है

दरिया हो या कि समन्दर सब का एक किनारा है

दिल अपना इतना नाज़ुक था जिससे मिले हम सबके है

अब सबके तकाज़े पूरे हुये तो कहने लगे बेचारा है

इस गाँव की कच्ची गलियों में बचपन में हमारे साथ रहे

अहदे जवानी में लोगों अब कोई नहीं हमारा है

ये प्यार मुहब्बत खेल हुआ अब अहदो वफा है बेमानी

माज़ी ही ग़मख्वार है अपना दर्द ही एक सहारा है

अहले खिरद तो दिलवालों को दीवाना ही समझे है

आरिफ़ तो दीवाना ठहरा कैसे इसे पुकारा है

 

2.

ख़ामोश न रहिये कोई बात कीजिये

तन्हा जो किया करते थे अब साथ कीजिये

वो शाम तवील और वह लम्हें इन्तिज़ार

अपनी स्याह ज़ुल्फ़ों से ही रात कीजिये

ये बात दिगर है कि खिलवत कदे में है

आये है तो उनसे मुलाकात कीजिये

क्या कुछ छुपा के रखा है उस नशतर-एदिल में

करना है राज़ फ़ाश तो एक साथ कीजिये

आरिफ़ ने अगर छेड़ दी है अगर अन्जुमन की बात

फिर आप ही तनहाइयों की बात कीजिये

 

3.

ग़ज़ल सरा हूँ तेरी खातिर कुछ तो लगाव हो

हमसे जुदा हो कैसी बीती सारा हाल सुनाव हो

ये अहले खिरद हैं दीवाने पे मश्क-ए-सितम है

तुम बज़्म-ए-वफा के एक दिया तुम उनको राह दिखाव है

चुपके-चुपके होले-होले कौन दिये ये दस्तक हो

खोलो दिल के बन्द दरीचे उसमें उन्हें समाव हो

करते-करते बेदर्दी तुम दर्द के मारे बन बैठे

निकले आँसू मेरे लिए क्या बात हुई बतलाव हो

मस्त-मस्त आँखों को देखूँ तब मैं कोई शेर कहू।

आरिफ अपनी ग़ज़ल सुनाये तुम भी गीत सुनाव हो

 

4.

देखो ये शाम गेसुय-ए-शब खोल रही है

गुंचे चटक रहे है कली बोल रही है

इक नूर उतर आया है सहराये अरब में

हर एक जबाँ सल्ले अला बोल रही है

आया कोई छ्लकता हुआ जाये गुलाबी

शबनम भी दो बूँद को लब खोल रही है

चाहे वह शब-ए-हिज्र हो या हो शब-ए-विसाल

मेरे लिए दोनों बड़ी अनमोल रही है

छुप-छुप के रो लिए हो देखे न कोई और

आरिफ तेरी ये आँख तो सच बोल रही है

 

5.

क़ुदरत से वह जाने तमन्ना ऐसी अदा कुछ पाये है

उसके परतवे हुस्न से गुल भी अपना रंग चुराये है

हुस्न-ए-अज़ल से ले जाते है दीवानों को मक़तल तक

इश्क़ ने पाया ऐसा जुनूँ कि मक़तल भी थरराये है

गौहर मोती लाल जमुर्रद ये सब तो नायाब सही

उनके लब का एक तबस्सुम सब पे सबकत पाये है

खून-ए-जिगर से सींचा हमने गुलशन की हर डाली को

फसले बहाराँ आई जब तो माली हमें सताये है

तर्के खामोशी करके हम तो चले है कूये जानाँ को

जैसे-जैसे क़दम बढ़े है आरिफ तो घबराये है

 

6.

करम उनका ज़फा उनकी सितम उनका वफा उनकी

हमारा आबला अपना मुहब्बत में अना उनकी

तबस्सुम भी उन्हीं का और शोखी भी उन्हीं की है

हमारा अश्क अपना और चेहरे की हया उनकी

जूनून-ए-शौक दीद अपना और ये रूसवाइयाँ अपनी

ये सर सर की तपिश अपनी और वो वादे सबा उनकी

ये प्यासे लब भी अपने ये खाली जाम भी अपना

वो और को पिलाये है यही नाज़ुओ अदा उनकी

मेरे ज़ख़्मे जिगर का हाल आरिफ कुछ बता उनको

कभी ऐ काश हो जावे मेरी खातिर दुआ उनकी

 

7.

भुला दूँ कैसे मैं उसकी क़यामत खेज़ नज़रों को

कि जिन से जीस्त के उजडे चमन में फिर बहार आई

लिखूँ तफसीर कैसे उसके मैं हर हर तबस्सुम की

कि मैं भी मयकदे से देखने दीवाना वार आई

चमन में जब गुलों ने ज़िक्र छेड़ा उनकी आमद का

कदमं बोसी को आई है सबा मस्तानापार आई

बड़ी बेकैफ गुजरी है जुदाई की स्याह रातें

नसीम सुभ जो आई तो खबर खुशगवार आई

तकल्लुफ जान लेवा है यही आरिफ को बतला दो

चलो अब मयकदे क आई शाम-ए-इन्तज़ार आई

 

8.

दिल की धड़कन रफ्ता रफ्ता दर्द जिगर में होये है

तुझमें ऐसा कोन सा जादू आँख हमारी रोये है

जंगल जैसा सूना सूना हर इक रस्ता लगता है

महफिल सारी तन्हा तन्हा तुझ बिन ये सब होये है

यारों ने सब दर्द जगाया नाम ज़ुबाँ पर ले लेकर

ये तेरा बेचारा ऐसा हँस हँस के भी रोये है

सुख कैसा और दुख कैसा उसका कुछ एहसास नहीं

तेरी ज़ुल्फ के छाँव तले ये थका हुआ जब सोये है

उनको देखो कौन है वह? चाक है दामन चाक गरीबाँ

ज्यों ज्यों उफक पे लाली छाई अपना आपा खोये है

यूँ तो ग़ज़ले सब कहते सबका है अन्दाज़ जुदा

तेरे नाम ग़ज़ल जब लिखी जी भर आरिफ रोये है

 

9.

किसने देखी मस्त निग़ाहे उससे मय को कौन पिये है

किसको उसने गैर कहा है देखो किसको अपना कहे है

नक्शे पा की सजदा रेजी हरगिज शेवये इश्क़ नहीं

सहरा-सहरा जिसने तलाशा इश्क़ को वह बदनाम किये है

वह पाँव लहू से तर जो हुये फूलों के वही है सैदायी

गुलशन तक जो आ न सके वह गुल की तमन्ना काहे किये है

आहट हुई तो धड़क उठा दिल हवा भी कितनी ज़ालिम है

रात अन्धेरी और तन्हाई खुले दरिचे बन्द किये है

कोई ऐसी बात हुई है आरिफ को वह भूल गया

तड़प तड़प के रात गुज़ारी मुझको ऐसा दर्द दिए है

 

10.

आँखे अब पथरायी है बन्द दरीचे खोलो हो

काहे इतना ज़ुल्म किये हो कुछ तो बोलो हो

चाँद भी मद्धम तारे रोये गम का अन्धेरा और बढ़ा

रात तो सारी गुज़र गई है कुछ लम्हा तो सो लो हो

शाम उफक की लाली है या तेरा जलवा-ए-नाज़ व अदा

मेरी आँखे बरखा खूं है अपनी ज़ुल्फ भिगो लो हो

देखू तुम को शाम व सहर मैं दिल की तमन्ना कुछ ऐसी

आओ तुम भी मयखाने में बन्द ज़ुबा को खोलो हो

कदम-कदम पे रुसवा हुये हो आरिफ होश में आओ तो

दामन पे कुछ दाग लगे है अश्कों से तुम धो लो हो

 

11.

बुतखाने भी कहने लगे अब काफिर हो आवारा हो

कोई कहे है रंज में डूबा कोई कहे बेचारा हो

दर्द व गम रंज व अलम ये सब कोरी बाते है

जामे मुहब्बत पीकर देखों प्यार बड़ा ही प्यारा हो

सागर सागर दरिया दरिया सहरा सहरा देखों हो

तुम हि तुम हर सू हो चरचा एक तुम्हारा हो

दामन अपना चाक करे हो इश्क़ को भी बदनाम करे हो

इश्क़ का दरिया सब्र का दामन देखो साथ किनारा हो

रो रो काटी हिज्र की राते आरिफ करे हो अपनी बात

आँसू अपना दामन अपना जीने का एक सहरा हो

 

12.

हँस के हर एक गम को मैं सहता रहा तेरे बगैर

रात भर तनहाई में जलता रहा त्तेरे बगैर

फूल सा बिस्तर मुझे चुभता है काटों की तरह

चाँदनी से ये बदन जलता रहा तेरे बगैर

मयकदे मे अब नहीं है कैफ व मस्ती व सुरूर

हाथ में सागर लिए फिरता रहा तेरे बगैर

उफ ये नशा-ए-हिज्र ये सरगोशी-ए-बाद-ए-सबा

रातभर मैं करवटे लेता रहा तेरे बगैर

ये मेरी तनहाइयाँ डसती है नागिन की तरह

आरिफ ये गम-ए-दिल है सुलगता रहा तेरे बगैर

 

13.

हक़ में तेरे बहुत सी दुआ कर चुके है हम

बाक़ी नहीं है कुछ भी वफा कर चुके है हम

उम्मीद की कली न खिलाओं चमन में और अब

सौ बार बहारों से गिला कर चुके है हम

हमने उदासियों से ही दामन सजा लिया

खुशियाँ मिलें इन्हें ये दुआ कर चुके है हम

तेरे फरेब-ए-इश्क़ ने ली जाँ तो क्या हुआ

उसका भी खूँ बहा तो अदा कर चुके है हम

वह मर्ज़ ला इलाज कहते है जिसे इश्क़

इस मर्ज़ को भी आरिफ से दवा कर चुके है हम

 

14.

तेरा कितना एहतरा है साकी

तेरे बिन पीना हराम है साकी

न चल सुए-मयखाना अभी

अभी तो वक्त-ए-शाम है साकी

देख इक नज़र इधर को भी

किससे हमकलाम है साकी

तू ख़फा होये तो ख़फा हो जा

दिल में तेरा ही मुकाम है साकी

होश आये तो बात कुछ होवे

अभी तेरा ही नाम है साकी

चाहे आरिफ हो या कि ज़ाहिद हो

हर इक लब पे तेरा नाम है साकी

 

15.

कितना गहरा दर्द मिला यादों की छाँव में जीने में

काटों की तरह से चुभती है रह र हके हमारे सीने में

न दर्द कोई न रुसवाई न दाग कोई दामन पे लगा

ऐ इश्क छुपा है राज़ कोई इस परवाने के सीने में

अपना दर्द छुपा ले दिल में कोई नहीं गमख़्वार यहाँ

पीकर देखो बड़ा मज़ा है अश्कों के पी लेने में

चाक है दामन चाक ग़रीबाँ अब तक महवे-आस रहा

नज़रें इनायत अबके हुईं तो दिल धड़का है सीने में

यूँ तो हमने मैंख़ाने में रोज़ पिया है ऐ आरिफ

छा जाता है अजब नशा कुछ तेरे हाथ से पीने में

 

16.

मैं इश्क की आवाज़ हूँ मैं प्यार का अन्दाज़ हूँ

मैं हुस्न की मासूमियत मैं इक अदा-ए-नाज़ हूँ

मैं ग़म-ए-जहाँ से दूर हूँ मैं मस्ती का सुरूर हूँ

राह-ए-इश्क की थकी हुई मैं चश्म-नीमबाज़ हूँ

मैं इश्क की आवारगी छायी हुई दीवानगी

शब-ए-हिज्र की वो साअतें, उन्हीं साअतों का साज़ हूँ

मेरी तमन्ना में है तू मेरी आरज़ू मेरी जुस्तज़ू

तू है वफा-ए-दिलनशीं मैं तेरा शरीक-ए-राज़ हूँ

चर्चा है तेरा आजकल तेरा नहीं कोई बदल

आरिफ की है तू इक ग़ज़ल मैं उसका मिस्र-ए-राज़ हूँ

 

17.

आया है अब क़रार दिल-ए-बेकरार में

जब ये क़दम पहुँच गये उनके दयार में

गर संग ही मिले फूलों के एवज तो

हम रोज़ रोज़ जायेगे उनके दयार में

वह जुम्बिश-ए-जब और निगाहों का वह झुकाव

क्या देख ले न जाऊँ मैं उनके दयार में

अब तक न कह सके जो वह बात उनसे कहते

वह रू-बरू जो होते अबके बहार में

इक बार मुस्कुरा के नज़र में उठा दिया

आरिफ अभी तक डूबे हुए हैं ख़ुमार में

 

18.

निगाहों में किसी तस्वीर का होना न हीं अच्छा

जुदाई में मेरे हमदम कभी रोना नहीं अच्छा

पी है जो मय-ए-इश्क तो करना भी एहतराम

रिन्दी में कभी होश का खोना नहीं अच्छा

ऐ गौहर-ए-नायाब मेरे जीस्त के हासिल

तेरे लिए फूलों का बिछौना नहीं अच्छा

टूटे हुए दिल वाले दुनिया को संभाले हैं

सरापा दर्द है उनपे कभी हँसना नहीं अच्छा

ये इश्क इम्तहान है आरिफ से हुनर ले

मजनू की तरह सेहरा में भटकना नहीं अच्छा

 

19.

शायद मेरी निगाह को करता है वह निहाल

आया किसी शहर से ऐसा परी जमाल

शायद उसे मालूम नहीं अपना ख़द्द-ओ-ख़ाल

शायद उसे मजबूरियों ने कर दिया निढाल

शायद उसे तलाश है प्यासों की भीड़ में

ज़ब्त-ओ-शऊर जिसमेें हो वह रिंद बाकमाल

शायद भटक गया है वह राह-ए-जुनून से

उसका ही हो रहा हो उसे रंज-ओ-मलाल

शायद उसे तनहाइयों से रब्त बहुत है

समझे वह शब-ए-हिज्र को ही शब-ए-विसाल

शायद उसे जुगनू ही हमराज़ लगे है

तारीकी से बचने को बनाया हो उसे ढाल

शायद उसे फूलों की रंगत से इश्क़ हो

बुलबुल के साथ गीत को गाये वह ख़ुशख़याल

शायद उसे नज्जार-ए-फितरत से इश्क़ है

सो रोज़ सुबह करता है उससे वह कुछ सवाल

शायद उसे कुछ टूटे हुए दिल से लगाव है

सो पूछ रहा है वह ज़माने से मेरा हाल

शायद उसे दीवानगी लगती है अब फज़ूल

होता है उसे परवाने के जलने का भी मलाल

शायद उसे ज़माने से कुछ रस्म-ओ-राह है

दीवानगी में रहता है आदाब का ख़याल

शायद कभी होटों पे तबस्सुम भी रहा है

चेहरे पे रहा होगा कभी हुस्न पुरजमाल

शायद कभी शरमाती रही हो शरर उससे

चश्म-ए-हया में उसके रहा हो कोई कमाल

शायद इसी गेसू से उठती हो घटा भी

बादल सा बरस जायेगालगता है हर एक बाल

शायद इन्हीं होटों पे मचलती हो सबा भी

रुख़सार यही लगते हैं ज़माने में बेमिसाल

शायद उसे आरिफ से पहले थी शिकायत

पर आज हो गया है उसी का ही हमख़याल

 

20.

ज़ब्त कर ऐ हसरत-ए-दीद कुछ देर अभी है

ग़ुज़रे थे वह जिस राह से वह राह यही है

एक जाम मोहब्बत का पिला के वह चल दिये

बाक़ी अभी भी तिश्नालबीतिश्नालबीहै

एक हल्क-ए-ज़जीर है या गेसू-ए-जाना

दोश-ए-हया में कोई बदली सी उठी है

छेड़ो न इसे ऐ सबा जागा है कई रात

तक तक के उसी राह को अब आँख लगी है

अश्कों की पनहगाह आरिफ को ले सलाम

हर शाम तेरी ज़ात पे एक लाज बची है

 

21.

तुम्हारी याद की खुशबू को लेकर जब हवा आयी

मैं तेरे दिल में बसता हूँ कुछ ऐसी ही सदा आयी

तेरे क़दमों को चूमें क़ामयाबी हर घड़ी हर पल

मेरे होटों पर जब भी आयी तो बस यही दुआ आयी।

अजब दस्तूर दुनिया का मोहब्बत को बुरा समझे

यहाँ तो इश्क़ के हिस्से में हरदम ही सज़ा आयी

मोहब्बत है मेरा ईमान बस मैं इसमें क़ायम हूँ

नहीं सोचा कभी हिस्से में कितनी बद्दुआ आयी

तेरे चेहरे की रंगत फूल में ख़ुशबू कली में है

तेरी उल्फ़त का किस्सा लेके अब बादे सबा अयी

कोई अपना कहे आरिफ को बस इतनी तमन्ना है

कि मैं भी कह सकूँ हिस्से में मेरे भी वफ़ा आयी

 

22.

तुम्हारी याद की खुशबू को लेकर जब हवा आयी

मैं तेरे दिल में बसता हूँ कुछ ऐसी ही सदा आयी

तेरे क़दमों को चूमें क़ामयाबी हर घड़ी हर पल

मेरे होटों पर जब भी आयी तो बस यही दुआ आयी।

अहब दस्तूर दुनिया का मोहब्बत को बुरा समझे

यहाँ तो इश्क़ के हिस्से में हरदम ही सज़ा आयी

मोहब्बत है मेरा ईमान बस मैं इसमें क़ायम हूँ

नहीं सोचा कभी हिस्से में कितनी बद्दुआ आयी

तेरे चेहरे की रंगत फूल में ख़ुशबू कली में है

तेरी उल्फ़त का किस्सा लेके अब बादे सबा अयी

कोई अपना कहे आरिफ को बस इतनी तमन्ना है

कि मैं भी कह सकूँ हिस्से में मेरे भी वफ़ा आयी

 

23.

वह रंग वह शबाब ज़रा याद कीजिए

वह चश्म पुर सराब ज़रा याद कीजिए

अबरे बहार आके चमन कर गई गुदाज़

सर मसति-ए-गुलाब ज़रा याद कीजिए

उड़ते हुए गेसू को संभाले में लगे हैं

वह मंज़र-ए-नायाब ज़रा याद कीजिए

महफिल में उठे और वह बरहम चले गये

चेहरे का वह अताबज़रा याद कीजिये

नज़रें उधर को उट्ठीं तो उट्ठी ही रह गयीं

सरका था जब हिजाब ज़रा यद कीजिये

आमद से जिसके शोर क़यामत सा थम गया

वह हुस्न-ए-पुरशबाब ज़रा याद कीजिये

वह चश्म-ए-नीमबाज़ सी मस्ती कहीं नहीं

आरिफ़ वही शराब ज़रा याद कीजिये

 

24.

रात को इस अँधेरे में जी मेरा घबराये है

चुपके-चुपके धीरे-धीरे कौन यहाँ तक आये है

हिज्र की रात को हर लम्हा एक सदियों जैसा लगता है,

अब आयेगा वस्ल का लम्हा दिल, दिल को समझाये है

उनकी गली से जब गुज़रे हम बाम पर साया लहराया

ठहरे कदम वहाँ कोई नहीं यह आँख ही धोखा खाये है

अजब हया फूलों पे छाई कली-कली शरमायी है

जान-ए-तमन्ना चमन में आया ज़ुल्फों को लहराये है

नाज़ुक-नाज़ुक हाथ से अपने साक़ी जाम उठाये है

तश्ना लव सब रिन्द यहाँ किसके हिस्से आये हैं

अपना अश्क़ है पिया हमने ग़म की परदादारी को

हिज़्र तो एक हक़ीक़त आरिफ खुद को यह समझाये है

 

25.

तंगदस्ती अना दोनों ही साथ हैं

दर्द बच्चों से अपना छुपाते रहे

बेवफाई का इल्ज़ाम सर पे लिए

दोस्ती दोस्तों को सिखाते रहे

अब तो तनहाई ही अन्जुमन हो गयी

दर्द खुद को ही अपना सुनाते रहे

जाम छलका जो हाथों से उनके कभी

ढंग-ए-रिन्दी ही आरिफ बताते रहे