अबू आरिफ

1. अज़्म मोहकम करके दिल में ये ही एक सहारा है दरिया हो या कि समन्दर सब का एक किनारा है दिल अपना इतना नाज़ुक था जिससे मिले हम सबके है अब सबके तकाज़े पूरे हुये तो कहने लगे बेचारा है इस गाँव की कच्ची गलियों में बचपन में हमारे साथ रहे अहदे जवानी में… Continue reading अबू आरिफ