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अज्ञात शायर

मेरी जाँ गो तुझे दिल से भुलाया जा नहीं सकता
मगर ये बात मैं अपनी ज़ुबां पर ला नहीं सकता

तुझे अपना बनाना मोजिब-ए-राहत समझकर भी
तुझे अपना बना लूँ ये तसव्वुर ला नहीं सकता

हुआ है बारहा एहसास मुझको इस हक़ीक़त का
तेरे नजदीक रह कर भी मैं तुझको पा नहीं सकता

मेरे दस्ते हवस की दस्तरस है जिस्म तक तेरे
समझता हूँ कि दिल पै’ कब्जा पा नहीं सकता

तेरे दिल की तमन्ना भी करूँ तो किस भरोसे पर
मैं ख़ुद दरगाह में तेरी ये तोहफा ला नहीं सकता

मेरी मजबूरियों को भी बहुत कुछ दखल है इसमें
तुझी को मोरिदे-इलजाम मैं ठहरा नहीं सकता

मैं तुझसे बढ़कर अपनी आबरू को प्यार करता हूँ
मैं अपनी इज्ज़त-ओ-नामूस को ठुकरा नहीं सकता

तेरे माहौल की पस्ती का ताना दूँ तुझे क्यूं कर
मैं ख़ुद माहौल से अपनी रिहाई पा नहीं सकता