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ज़ाकिर भी लिखूं तो जिक़्र उन्ही का आता है

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ज़ाकिर1 भी लिखूं तो जिक़्र उन्ही का आता है

खुदा में भी हमें बस नजर वो आता है

अब इबादत भी उनको याद करने से होती है

उनकी गली से गुजरना ज़ियारत2 हो जाता है

मायने:

  1. ज़ाकिर: भगवान् की प्रशंसा की कविता
  2. ज़ियारत: तीर्थयात्रा

 

एक अरसे से उनसे नजर नहीं मिली

जमाना गुजर गया किसी को देखे हुए


बरसते सावन में कभी तो भीगती होगी वो

इन बादलों की बूंदो में एक अश्क हमारा भी हो


इक मुलाकात क़ी दरकार थी, इक अरसे से हमें
गुज़र चला इक अरसा, तुम्हारी ‘न-‘न’ सुनकर


रंग ओ रोशनी ने रूखसत ले ली जिंदगी से
सफ़ेद कागज़ पर काली स्याही तो तडपते हुए देखा है