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अब्बास अली “दाना”

1.
जर्फसे बढके हो इतना नहीं मांगा जाता
प्यास लगती है तो दरिया नहीं मांगा जाता

चांद जैसी हो बेटी कीसी मुफलिसकी तो
उंचे घरवालों से रिश्ता नहीं मांगा जाता

अपने कमज़ोर बुज़ुर्गोंका सहारा मत लो
सूखे पेडोंसे तो साया नहीं मांगा जाता

है इबादत के लिये तो अकिदत शर्त दाना
बंदगी के लिये सजदा नहीं मांगा जाता

2.
अपने ख़्वाबों में तुझे जिस ने भी देखा होगा
आँख खुलते ही तुझे ढूँढने निकला होगा

ज़िंदगी सिर्फ़ तेरे नाम से मनसूब रहे
जाने कितने ही दिमाग़ों ने ये सोचा होगा

दोस्त हम उस को ही पैग़ाम-ए-करम समझेंगे
तेरी फ़ुर्क़त का जो जलता हुआ लम्हा होगा

दामन-ए-ज़ीस्त में अब कुछ भी नहीं है बाक़ी
मौत आई तो यक़ीनन उसे धोखा होगा

रौशनी जिस से उतर आई लहू में मेरे
ऐ मसीहा वो मेरा ज़ख़्म-ए-तमन्ना होगा