बोस्की ब्याहने का समय अब करीब आने लगा है जिस्म से छूट रहा है कुछ कुछ रूह में डूब रहा है कुछ कुछ कुछ उदासी है,सुकूं भी सुबह का वक्त है पौ फटने का, या झुटपुटा शाम का है मालूम नहीं यूँ भी लगता है कि जो मोड़ भी अब आएगा वो किसी और… Continue reading गुलज़ार की बोस्की /Gulzar Ki Boski