न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है;
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है।
~ Faiz Ahmad Faiz
मैं थोड़ी देर तक बैठा रहा उसकी आँखों के मैखाने में;
दुनिया मुझे आज तक नशे का आदि समझती है।
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़’;
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए।
~ Firaq Gorakhpuri
बोतलें खोल कर तो पी बरसों;
आज दिल खोल कर भी पी जाए।
~ Rahat Indori
तेरे होठों में भी क्या खूब नशा मिला;
यूँ लगता है तेरे जूठे पानी से ही शराब बनती है।