अभी इस तरफ़ न निगाह कर, मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ मेरा लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ abhii is taraf n nigaah kar main gjl kii palaken sanvaar loon meraa lafj-lafj ho aaiinaa tujhe aaiine men utaar loon मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब का जगा हुआ ज़रा… Continue reading अभी इस तरफ़ न निगाह कर, मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, के मेरी नज़र को ख़बर न हो

  कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर न हो मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो kabhii yoon bhii aa merii aankh men, ki merii najr ko khbar n ho mujhe ek raat navaaj de, magar usake baad sahar n ho वो बड़ा रहीमो-करीम है,… Continue reading कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, के मेरी नज़र को ख़बर न हो