अमज़द इस्लाम अमज़द

1. दरिया की हवा तेज़ थी, कश्ती थी पुरानी रोका तो बहुत दिल ने मगर एक न मानी मैं भीगती आँखों से उसे कैसे हटाऊ मुश्किल है बहुत अब्र में दीवार उठानी निकला था तुझे ढूंढ़ने इक हिज्र का तारा फिर उसके ताआकुब में गयी सारी जवानी कहने को नई बात हो तो सुनाए सौ… Continue reading अमज़द इस्लाम अमज़द