अंजुम सलीमी

1. दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया दिल बुझने लगा था सो नज़ारे से उठाया बे-जान पड़ा देखता रहता था मैं उस को इक रोज़ मुझे उस ने इशारे से उठाया इक लहर मुझे खींच के ले आई भँवर में वो लहर जिसे मैं ने किनारे से उठाया घर में कहीं गुंजाइश-ए-दर ही नहीं… Continue reading अंजुम सलीमी

‘असअद’ भोपाली

1. कुछ भी हो वो अब दिल से जुदा हो नहीं सकते हम मुजरिम-ए-तौहीन-ए-वफ़ा हो नहीं सकते ऐ मौज-ए-हवादिस तुझे मालूम नहीं क्या हम अहल-ए-मोहब्बत हैं फ़ना हो नहीं सकते इतना तो बता जाओ ख़फ़ा होने से पहले वो क्या करें जो तुम से ख़फ़ा हो नहीं सकते इक आप का दर है मेरी दुनिया-ए-अक़ीदत… Continue reading ‘असअद’ भोपाली

‘अनवर’ साबरी

1. रहते हुए क़रीब जुदा हो गए हो तुम बंदा-नवाज़ जैसे ख़ुदा हो गए हो तुम मजबूरियों को देख के अहल-ए-नियाज़ की शायान-ए-ऐतबार-ए-जफ़ा हो गए हो तुम होता नहीं है कोई किसी का जहाँ रफ़ीक़ उन मंज़िलों में राह-नुमा हो गए हो तुम तन्हा तुम्हीं हो जिन की मोहब्बत का आसरा उन बे-कसों के दिल… Continue reading ‘अनवर’ साबरी

‘अज़ीज़’ हामिद मदनी

1.  ताज़ा हवा बहार की दिल का मलाल ले गई पा-ए-जुनूँ से हल्क़ा-ए-गर्दिश-ए-हाल ले गईजुरअत-ए-शौक़ के सिवा ख़लवतियाँ-ए-ख़ास को इक तेरे गम की आगही ता-ब-सवाल ले गईशोला-ए-दिल बुझा भुझा ख़ाक-ए-ज़बाँ उड़ी उड़ी दश्त-ए-हज़ार दाम से मौज-ए-ख़याल ले गई रात की रात बू-ए-गुल कूज़ा-ए-गुल में बस गई रंग-ए-हज़ार मै-कदा रूह-ए-सिफ़ाल ले गई तेज़ हवा की चाप… Continue reading ‘अज़ीज़’ हामिद मदनी

‘अज़ीज़’ वारसी

1. तेरी तलाश में निकले हैं तेरे दीवाने कहाँ सहर हो कहाँ शाम हो ख़ुदा जाने हरम हमीं से हमीं से हैं आज बुत-ख़ाने ये और बात है दुनिया हमें न पहचाने हरम की राह में हाइल नहीं हैं बुत-ख़ाने हरम से अहल-ए-हरम हो गए हैं बेगाने ये ग़ौर तू ने किया भी के हश्र… Continue reading ‘अज़ीज़’ वारसी

‘अज़हर’ इनायती

1. ख़त उस के अपने हाथ का आता नहीं कोई क्या हादसा हुआ है बताता नहीं कोई. गुड़िया जवान क्या हुईं मेरे पड़ोस की आँचल में जुगनुओं को छुपाता नहीं कोई. जब से बता दिया है नुजूमी ने मेरा नाम अपनी हथेलियों को दिखाता नहीं कोई. कुछ इतनी तेज़ धूप नए मौसमों की है बीती… Continue reading ‘अज़हर’ इनायती

‘अख्तर’ सईद खान

1. कहें किस से हमारा खो गया क्या किसी को क्या के हम को हो गया क्या खुली आँखों नज़र आता नहीं कुछ हर इक से पूछता हूँ वो गया क्या मुझे हर बात पर झुटला रही है ये तुझ बिन ज़िंदगी को हो गया क्या उदासी राह की कुछ कह रही है मुसाफ़िर रास्ते… Continue reading ‘अख्तर’ सईद खान

हर एक बात पे कहते हो तुम के ‘तू क्या है

हर एक बात पे कहते हो तुम के ‘तू क्या है ? तुम ही कहो के यह अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है ? [ गुफ्तगू = conversation ] ना शोले में यह करिश्मा ना बर्क़ में ये अदा कोई बताओ की वो शोख-ए-टुंड_खो क्या है ? [ बर्क़ = lightning, टुंड = sharp/angry, खो. = behavior ]… Continue reading हर एक बात पे कहते हो तुम के ‘तू क्या है

Best of Mirza Ghalib (मिर्ज़ा ग़ालिब)

1 बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना Bas ki dushwaar hai har kaam ka aasaan hona Aadami ko bhi mayssar nahin insaan hona ***** 2 अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल मेरे पते से ख़ल्क़* को क्यूँ तेरा घर मिले खल्क  =  जनता… Continue reading Best of Mirza Ghalib (मिर्ज़ा ग़ालिब)

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले भ्रम… Continue reading हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले