हर एक बात पे कहते हो तुम के ‘तू क्या है

हर एक बात पे कहते हो तुम के ‘तू क्या है ? तुम ही कहो के यह अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है ? [ गुफ्तगू = conversation ] ना शोले में यह करिश्मा ना बर्क़ में ये अदा कोई बताओ की वो शोख-ए-टुंड_खो क्या है ? [ बर्क़ = lightning, टुंड = sharp/angry, खो. = behavior ]… Continue reading हर एक बात पे कहते हो तुम के ‘तू क्या है

Best of Mirza Ghalib (मिर्ज़ा ग़ालिब)

1 बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना Bas ki dushwaar hai har kaam ka aasaan hona Aadami ko bhi mayssar nahin insaan hona ***** 2 अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल मेरे पते से ख़ल्क़* को क्यूँ तेरा घर मिले खल्क  =  जनता… Continue reading Best of Mirza Ghalib (मिर्ज़ा ग़ालिब)

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले भ्रम… Continue reading हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले