अनन्त कौर

1. तिरे ख़्याल के साँचे में ढलने वाली नहीं मैं ख़ुशबुओं की तरह अब बिखरने वाली नहीं तू मुझको मोम समझता है पर ये ध्यान रहे मैं एक शमा हूँ लेकिन पिघलने वाली नहीं तिरे लिये मैं ज़माने से लड़ तो सकती हूँ तिरी तलाश में घर से निकलने वाली नहीं मैं अपने वास्ते भी… Continue reading अनन्त कौर