‘अज़ीज़’ वारसी

1. तेरी तलाश में निकले हैं तेरे दीवाने कहाँ सहर हो कहाँ शाम हो ख़ुदा जाने हरम हमीं से हमीं से हैं आज बुत-ख़ाने ये और बात है दुनिया हमें न पहचाने हरम की राह में हाइल नहीं हैं बुत-ख़ाने हरम से अहल-ए-हरम हो गए हैं बेगाने ये ग़ौर तू ने किया भी के हश्र… Continue reading ‘अज़ीज़’ वारसी