‘अनवर’ साबरी

1. रहते हुए क़रीब जुदा हो गए हो तुम बंदा-नवाज़ जैसे ख़ुदा हो गए हो तुम मजबूरियों को देख के अहल-ए-नियाज़ की शायान-ए-ऐतबार-ए-जफ़ा हो गए हो तुम होता नहीं है कोई किसी का जहाँ रफ़ीक़ उन मंज़िलों में राह-नुमा हो गए हो तुम तन्हा तुम्हीं हो जिन की मोहब्बत का आसरा उन बे-कसों के दिल… Continue reading ‘अनवर’ साबरी