अख्तर लखनवी

अब दर्द का सूरज कभी ढलता ही नहीं है। ये दिल किसी पहलू भी संभलता ही नहीं है। बे-चैन किए रहती है जिसकी तलबे-दीद अब बाम पे वो चाँद निकलता ही नहीं है। एक उम्र से दुनिया का है बस एक ही आलम ये क्या कि फलक रंग बदलता ही नहीं है । नाकाम रहा… Continue reading अख्तर लखनवी