अख्तर इमाम रिज़वी

अश्क जब दीदए-तर से निकला एक काँटा सा जिगर से निकला फिर न मैं रात गए तक लौटा डूबती शाम जो घर से निकला एक मैयत की तरह लागता था चाँद जब क़ैदे-सहर से निकला मुझको मंजिल भी न पहचान सकी मैं की जब गुर्दे-सफर से निकला हाय दुनिया ने उसे अश्क कहा खून जो… Continue reading अख्तर इमाम रिज़वी