पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है

हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे

दूर जाने की कोशिशों में हैं

इसी सबब से हैं शायद, अज़ाब जितने हैं

जब तेरा दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा

रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह

अभी इस तरफ़ न निगाह कर, मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ मेरा लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ abhii is taraf n nigaah kar main gjl kii palaken sanvaar loon meraa lafj-lafj ho aaiinaa tujhe aaiine men utaar loon मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब का जगा हुआ ज़रा… Continue reading अभी इस तरफ़ न निगाह कर, मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, के मेरी नज़र को ख़बर न हो

  कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर न हो मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो kabhii yoon bhii aa merii aankh men, ki merii najr ko khbar n ho mujhe ek raat navaaj de, magar usake baad sahar n ho वो बड़ा रहीमो-करीम है,… Continue reading कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, के मेरी नज़र को ख़बर न हो