मधुशाला – हरिवंशराय बच्चन

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।   प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे… Continue reading मधुशाला – हरिवंशराय बच्चन

ना पीने का शौक था, ना पिलाने का शौक था

ग़म इस कदर मिला कि घबरा के पी गए; ख़ुशी थोड़ी सी मिली तो मिला के पी गए; यूँ तो ना थे जन्म से पीने की आदत; शराब को तनहा देखा तो तरस खा के पी गए। ना पीने का शौक था, ना पिलाने का शौक था; हमे तो सिर्फ नज़र मिलाने का शौक था;… Continue reading ना पीने का शौक था, ना पिलाने का शौक था

नशा हम किया करते है, इलज़ाम शराब को दिया करते हैं

नशा हम किया करते है, इलज़ाम शराब को दिया करते हैं; कसूर शराब का नहीं उनका है जिनका चेहरा हम जाम में तलाश किया करते हैं। तनहइयो के आलम की ना बात करो जनाब; नहीं तो फिर बन उठेगा जाम और बदनाम होगी शराब। मैखाने मे आऊंगा मगर पिऊंगा नही साकी; ये शराब मेरा गम… Continue reading नशा हम किया करते है, इलज़ाम शराब को दिया करते हैं

नफरतों का असर देखो जानवरों का बटंवारा हो गया

पी के रात को हम उनको भुलाने लगे; शराब मे ग़म को मिलाने लगे; ये शराब भी बेवफा निकली यारो; नशे मे तो वो और भी याद आने लगे। मैं तोड़ लेता अगर तू गुलाब होती; मैं जवाब बनता अगर तू सवाल होती; सब जानते हैं मैं नशा नही करता; मगर मैं भी पी लेता… Continue reading नफरतों का असर देखो जानवरों का बटंवारा हो गया

खुदा / रात पश्मीने की / गुलज़ार

बुरा लगा तो होगा ऐ खुदा तुझे, दुआ में जब, जम्हाई ले रहा था मैं– दुआ के इस अमल से थक गया हूँ मैं ! मैं जब से देख सुन रहा हूँ, तब से याद है मुझे, खुदा जला बुझा रहा है रात दिन, खुदा के हाथ में है सब बुरा भला– दुआ करो ! अजीब सा… Continue reading खुदा / रात पश्मीने की / गुलज़ार

वक्त / रात पश्मीने की / गुलज़ार

मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ कुचलता हुआ घास की कलगियाँ गिराता हुआ गर्दनें इन दरख्तों की,छुपता हुआ जिनके पीछे से निकला चला जा रहा था वह सूरज तआकुब में था उसके मैं गिरफ्तार करने गया था उसे जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था   वक्त की आँख… Continue reading वक्त / रात पश्मीने की / गुलज़ार

Khat Shayari: अंधेरा है कैसे तिरा खत पढ़ूं, लिफ़ाफ़े में जरा रोशनी भेज दे

कासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूं मैं जानता हूं जो वो लिखेंगे जावाब में कैसे मानें कि उन्हे भूल गया तू ऐ ‘कैफ़’ उअन के ख़त आज हमें तेरे सिरहाने से मिले क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज्तिराब में उन की तरफ़ से आप लिखे ख़त जवाब में अपना खत आप… Continue reading Khat Shayari: अंधेरा है कैसे तिरा खत पढ़ूं, लिफ़ाफ़े में जरा रोशनी भेज दे

Munawwar Rana Shayari on ‘Maa’ | ‘माँ’ पर शायरी

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना Maine rote hue ponchhe the kisi din aansoo Muddaton Maa ne nahi dhoya dupatta apna ***** लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती Labon pe uske kabhi baddua nahi hoti Bas… Continue reading Munawwar Rana Shayari on ‘Maa’ | ‘माँ’ पर शायरी

गुलज़ार की बेहतरीन नज़्में | Gulzar Poetry

  नज़्म उलझी हुई है सीने में मिसरे अटके हुए हैं होठों पर उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा बस तेरा नाम ही मुकम्मल है इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी बारिश आती है तो पानी को… Continue reading गुलज़ार की बेहतरीन नज़्में | Gulzar Poetry

Best of Mirza Ghalib (मिर्ज़ा ग़ालिब)

1 बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना Bas ki dushwaar hai har kaam ka aasaan hona Aadami ko bhi mayssar nahin insaan hona ***** 2 अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल मेरे पते से ख़ल्क़* को क्यूँ तेरा घर मिले खल्क  =  जनता… Continue reading Best of Mirza Ghalib (मिर्ज़ा ग़ालिब)