शैल चतुर्वेदी की हास्य कविता : उल्लू बनाती हो?

एक दिन मामला यों बिगड़ा कि हमारी ही घरवाली से हो गया हमारा झगड़ा स्वभाव से मैं नर्म हूं इसका अर्थ ये नहीं के बेशर्म हूं पत्ते की तरह कांप जाता हूं बोलते-बोलते हांफ जाता हूं इसलिये कम बोलता हूं मजबूर हो जाऊं तभी बोलता हूं हमने कहा-“पत्नी हो तो पत्नी की तरह रहो कोई… Continue reading शैल चतुर्वेदी की हास्य कविता : उल्लू बनाती हो?