अहमद फ़राज़ पैदाइश से हिन्दुस्तानी थे, लेकिन विभाजन के बाद वे पाकिस्तान के बेहतरीन उर्दू कवियों मे शुमार हो गये, साथ साथ हिन्दूस्तान के लोगों के दिल में भी| आज भी उनकी ग़ज़लों के जादुई प्रभाव से हर कोई झूम उठता है| उनकी कलम से निकले चंद अल्फ़ाज ही उनकी विशाल शख्सियत का नजारा दिखाने के लिए काफ़ी है|
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूँढ उजड़े हु्ए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें***
स से पहले के बे-वफ़ा हो जाएं
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं***
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़मानेवाला***
करूँ न याद अगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे***
तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तो
अब हो चला यक़ीं के बुरे हम हैं दोस्तो
कुछ आज शाम ही से है दिल भी बुझा-बुझा
कुछ शहर के चिराग़ भी मद्धम हैं दोस्तो***
फ़राज साहब की शायरी के कुछ नमूने, रेख्ता की तरफ़ से|
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