रोते हुए आते है न सब हंसता हुआ जो जाएगा वो मुक़द्दर का सिकंदर जानेमन कहलाएगा वो सिकंदर क्या था ज़िसने ज़ुल्म से जीता ज़हां प्यार से जीते दिलो को वो झुका दे आसमा जो सितारो पर कहानी प्यार की लिख जाएगा वो मुक़द्दर का सिकंदर जानेमन कहलाएगा ज़िंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी… Continue reading वो मुक़द्दर का सिकंदर जानेमन कहलाएगा
Year: 2015
फ़सादात /रात पश्मीने की / गुलज़ार
उफुक फलांग के उमरा हुजूम लोगों का कोई मीनारे से उतरा, कोई मुंडेरों से किसी ने सीढियां लपकीं, हटाई दीवारें– कोई अजाँ से उठा है, कोई जरस सुन कर! गुस्सीली आँखों में फुंकारते हवाले लिये, गली के मोड़ पे आकर हुए हैं जमा सभी! हर इक के हाथ में पत्थर हैं कुछ अकीदों के खुदा… Continue reading फ़सादात /रात पश्मीने की / गुलज़ार
कायनात / रात पश्मीने की / गुलज़ार
बस चन्द करोड़ों सालों में सूरज की आग बुझेगी जब और राख उड़ेगी सूरज से जब कोई चाँद न डूबेगा और कोई जमीं न उभरेगी तब ठंढा बुझा इक कोयला सा टुकड़ा ये जमीं का घूमेगा भटका भटका मद्धम खकिसत्री रोशनी में ! मैं सोचता हूँ उस वक्त अगर कागज़ पे लिखी इक नज़्म कहीं उड़ते… Continue reading कायनात / रात पश्मीने की / गुलज़ार
अपाहिज व्यथा
अपाहिज व्यथा को सहन कर रहा हूँ, तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ । ये दरवाज़ा खोलो तो खुलता नहीं है, इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ । अँधेरे में कुछ ज़िंदगी होम कर दी, उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ । वे संबंध अब तक बहस में टँगे हैं, जिन्हें… Continue reading अपाहिज व्यथा
आज मानव का सुनहला प्रात है
आज मानव का सुनहला प्रात है, आज विस्मृत का मृदुल आघात है; आज अलसित और मादकता-भरे, सुखद सपनों से शिथिल यह गात है; मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो, आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो । आज सौरभ में भरा उच्छ्वास है, आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है; आज शतदल पर मुदित सा झूलता, कर… Continue reading आज मानव का सुनहला प्रात है
khat
Meraa Khat Us Ne Padhaa Padh Ke Naama-Bar Se Kahaa Yahi Javaab Hai Is Khat Kaa Koi Javaab Nahin [Ameer Minai] Tumhaare Khat Mein Nayaa Ik Salaam Kis Kaa Thaa Na Thaa Raqib To Aakhir Vo Naam Kis Kaa Thaa Aap Kaa Khat Nahin Milaa Mujh Ko Daulat-E-Jahaan Mili Mujh Ko [Aseer Lucknawi] Kya Kya… Continue reading khat
वक्त / रात पश्मीने की / गुलज़ार
मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ कुचलता हुआ घास की कलगियाँ गिराता हुआ गर्दनें इन दरख्तों की,छुपता हुआ जिनके पीछे से निकला चला जा रहा था वह सूरज तआकुब में था उसके मैं गिरफ्तार करने गया था उसे जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था वक्त की आँख… Continue reading वक्त / रात पश्मीने की / गुलज़ार
गुलज़ार की बोस्की /Gulzar Ki Boski
बोस्की ब्याहने का समय अब करीब आने लगा है जिस्म से छूट रहा है कुछ कुछ रूह में डूब रहा है कुछ कुछ कुछ उदासी है,सुकूं भी सुबह का वक्त है पौ फटने का, या झुटपुटा शाम का है मालूम नहीं यूँ भी लगता है कि जो मोड़ भी अब आएगा वो किसी और… Continue reading गुलज़ार की बोस्की /Gulzar Ki Boski
अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इमकान जानां / अहमद फ़राज़
अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इमकान जानां याद क्या तुझ को दिलाएं तेरा पैमां जानां ab ke tajdiid-e-vafaa kaa nahii.n imkaa.N jaanaa.N yaad kyaa tujh ko dilaaye.N teraa paimaa.N jaanaa.N तजदीद, Tajdiid: Novation, Renewal, Resurgence वफ़ा, Vafaa: Fulfilling A Promise, Fulfillment, Fidelity, Faithful, Sincerity, Sufficiency इमकान, Imkaan: Possibility जानां, Janaan: Dear, Beloved पैमां, Paimaan: Promise,… Continue reading अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इमकान जानां / अहमद फ़राज़
नज़म उलझी हुई है सीने में
नज़म उलझी हुई है सीने में मिस्रें अटके हुए हैं होंठों पर उड़ाते फिरते हैं तितलियों की तरह लफ्ज़ कागज़ पे बैठे ही नहीं nazm ulajhii huii hai siine me.n misre aTake hue hai.n hoTho.n par u.Date-phirate hai.n titliyo.n kii tarah lafz kaaGaz pe baiThate hii nahii.n नज़म, Nazm: Arrangement, Ordain, Order, Poetry, Verse उलझना,… Continue reading नज़म उलझी हुई है सीने में