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तुम्हारे साथ पूरा एक दिन बस खर्च करने की तमन्ना है !

 

 

 

जिंदगी की भागम भाग और रोजी रोटी की चिंता में न जाने कितने पल यूँ ही बीत जाते हैं …अपनों का साथ जब कम मिल पाता है तो दिल में उदासी का आलम छा जाता है ..और तब याद आ जाता है वह गाना दिल ढूढता है फ़िर वही फुर्सत के रात दिन बैठे रहें तस्वुर -ऐ -जानां किए हुए …पर कहाँ मिल पाते हैं वह फुर्सत के पल .. गुलजार जी ने इन्ही पलों को जिंदगी की खर्ची से जब जोड़ दिया तो इतने सुंदर लफ्ज़ बिखरे कागज पर कि लगा कि एक एक शब्द सच है इसका …

खर्ची …

मुझे खर्ची में पूरा एक दिन हर रोज़ मिलता है
मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है ,झपट लेता है ,अंटी से


कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने कि आहट भी नही होती
खरे दिल को भी मैं खोटा समझ कर भूल जाता हूँ !


गिरेबां से पकड़ कर माँगने वाले भी मिलते हैं !
तेरी गुजरी हुई पुश्तों का कर्जा है ,
तुझे किश्तें चुकानी है -“


जबरदस्ती कोई गिरवी रख लेता है ये कह कर
अभी दो चार लम्हे खर्च करने के लिए रख ले
बकाया उम्र के खाते में लिख देते हैं ,
जब होगा हिसाब होगा


बड़ी हसरत है पूरा एक दिन इक बार मैं अपने लिए रख लूँ
तुम्हारे साथ पूरा एक दिन बस खर्च करने की तमन्ना है !